इन खिलाड़ियों ने गरीबी के बावजूद छुआ है बुलन्दियों को,एक पिता करते थे फैक्ट्री में मजदूरी

दुनिया में खेल अब महज खेल नहीं रहा है। एक बेहतरीन करियर है। इसमें खिलाड़ियों को नाम, पैसा और भरपूर शोहरत मिलती है, लेकिन इन सब के लिए खिलाड़ियों को जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। जब कोई भी खिलाड़ी मेहनत से अपना नाम बना लेता हैं, तो उसकी संघर्ष की कहानी पीछे छूट जाती है। आइए जानते हैं देश के उन खिलाड़ियों के बारे में जो विपरीत हालातों को मात देकर सुपरस्टार बने हैं।

एथलेटिक्स में एक महीने के भीतर पांच गोल्ड मेडल जीतकर हिमा दास ने इतिहास रच दिया। हिमा की कहनी भी काफी दिलचस्प है। 18 साल की हिमा असम के छोटे से गांव ढिंग की रहने वाली हैं और इसलिए उन्हें ‘ढिंग एक्सप्रेस’ के नाम से भी जाना जाता है। वह एक गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखती हैं। पिता रंजीत दास के पास मात्र दो बीघा जमीन है, इसी जमीन पर खेती करके वह परिवार के सदस्यों की आजीविका चलाते हैं। हिमा जीत के समय अपने परिवार के संघर्षों को याद करती हैं और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं।

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेटरों में शामिल हैं, लेकिन उनका बचपन बेहद ही साधारण परिवार में बीता। उनके पिता एक सामान्य नौकरी करते थे। वहीं धोनी ने भी अपने परिवार के आर्थिक हालात को सुधारने के लिए कुछ वक्त के लिए रेलवे में टीटी की नौकरी की। मगर क्रिकेट के प्रति जुनून ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। रांची जैसे छोटे शहर से निकलकर धोनी भारतीय टीम के सबसे सफल कप्तानों में शुमार हुए।

रवींद्र जडेजा वर्तमान में शानदार ऑलराउंडर्स में शुमार हैं। उनके पास आज नाम, पैसा और शोहरत सब है, लेकिन उनका बचपन बेहद ही गरीबी में गुजरा है। जडेजा के पिता एक प्राइवेट कंपनी में चौकीदार की नौकरी किया करते थे। पैसों के अभाव में उनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थीं। मगर आज उन्होंने अपनी मेहनत से भारतीय क्रिकेट टीम में खास जगह बना ली है।

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व सलामी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग को पूरी दुनिया उनके खेल से जानती है। नजफगढ़ के नवाब कहलाने वाले वीरेंद्र सहवाग के नाम क्रिकेट में बहुत से रिकॉर्ड दर्ज हैं, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि सहवाग के पिता गेहूं के व्यापारी थे और वो 50 लोगों के सामूहिक परिवार में एक ही छत के नीचे रहते थे। इतना ही नहीं सहवाग अपनी क्रिकेट प्रैक्टिस के लिए 84 किलोमीटर तक का सफर तय करते थे। सहवाग की मेहनत रंग लाई और आज वो विश्व के सबसे विस्फोटक बल्लेबाजों में गिने जाते हैं।

हरभजन सिंह, एक ऐसा नाम जिसने स्पिन गेंदबाजी को अलग पहचान दिलाई। हरभजन ने साल 1998 में अपने करियर की शुरुआत की थी और पहली सीरीज के बाद उन्हें तीन साल तक टीम में जगह नहीं मिली। वो इस बात से इतना परेशान हो गए थे कि उन्होंने कनाडा जाकर टैक्सी चलाने का फैसला भी कर लिया था। मगर उनकी किस्मत पलटी और 2001 में उनकी वापसी भारतीय टीम में हो गई।

भारत की स्टार महिला धावक दुती चंद ने पूरे विश्व में अपने हुनर का लोहा मनवाया है। ओडिशा के एक गरीब बुनकर परिवार में जन्मीं दुती ने काफी संघर्ष किया और कई तरह की परेशानियों से जूझते हुए आगे बढती रहीं। 23 साल की धाविका को आईएएएफ की हाइपरड्रोजेनिज्म (ये वो अवस्था है जब किसी लड़की या महिला में पुरुष हॉर्मोन्स का स्तर एक तय सीमा से ज्यादा हो जाता है) नीति के कारण 2014-15 में खेलने की अनुमति नहीं दी, जिसके कारण वह 2014 राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में भाग नहीं ले पाईं, उन्होंने खेल अदालत में यह मामला उठाया और आखिर में जीत हासिल करने में सफल रहीं। वह टोक्यो ओलंपिक में भारत की बड़ी उम्मीद है।

भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का शुरुआती जीवन हरियाणा में अंबाला के एक छोटे गांव में गुजरा। तब रानी के पिता ठेला चलाते थे, बाद वो घोड़ागाड़ी हांकने लगे। रानी के पिता उनके स्टार बन जाने के बाद तक घोड़ागाड़ी हांकते थे। रानी रामपाल खुद बताती हैं कि घर में इतने पैसे भी नहीं थे कि वे मेरे लिए हॉकी भी खरीद सकें, लेकिन मेरे सपनों में उड़ान थी और उन्हीं सपनों और इच्छाओं को देखते हुए पिता ने मुझे गांव की एकेडमी में डाल दिया। भाई कारपेंटर था तो पिता और भाई दोनों के साथ की वजह से मेरी प्रैक्टिस किसी तरह शुरू हो गई।

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