किस तरह के बर्तन में खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए रहता है सही, जानिए जरूर

आज के समय में कई लोग फाइबर की प्लेट्स में खाना पसंद करते हैं। वहीं, अब भी कुछ लोग तांबे व लोहे के बर्तनों में खाते व पकाते हैं। आज के समय में हर कोई चाहता है कि उनकी सेहत अच्छी बनी रहे, इसके लिए लोग तमाम प्रयत्न करते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि किचन भी स्वास्थ्य खजाना माना जाता है। केवल वहां रखे मसाले ही नहीं बर्तन भी बीमारियों से दूर रखने में मददगार हैं। हालांकि, आज के समय में ज्यादातर लोग नॉन स्किक व शीशे के बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन आयुर्वेद में अब भी ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में उपयोग में लाए जाने वाले बर्तन स्वास्थ्य के लिए बेहतर होते हैं।

इनके इस्तेमाल से केवल अच्छी सेहत ही नहीं, शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर भी ठीक बना रहता है। बता दें कि शरीर में जब हीमोग्लोबिन बेहतर होता है तो इससे मस्तिष्क व शरीर के अन्य हिस्से भी हेल्दी रहते हैं। वहीं, कम होने से लोग आलसी व कमजोर महसूस करते हैं। आइए जानते हैं कि किन बर्तनों का उपयोग लाभदायक साबित होगा –

तांबा: तांबा के बर्तन में आमतौर पर चावल बनाए जाते हैं। तांबे में एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। साथ ही, कहा जाता है कि तांबे के गिलास या लोटा-जग में पानी पीने से पाचन बेहतर होती है। इतना ही नहीं, घाव जल्दी भरने में और बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करने में ये उपयोगी होता है। हीमोग्लोबिन बढ़ाने और बॉडी को डिटॉक्सिफाई करता है। हालांकि, इसमें कुछ एसिडिक पकाने व खाने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इससे उसका स्वाद प्रभावित होता है।

चांदी: चांदी में एंटी-बैक्टीरियल व एंटी-माइक्रोबियल तत्व पाए जाते हैं जो शरीर को ठंडक पहुंचाने में असरदार हैं। पित्त दोष को दूर करने के साथ ही ये मेटाबॉलिज्म और इम्युन सिस्टम को मजबूत करता है। चांदी के बर्तन में खाने-पीने से लोगों का मूड भी बेहतर होता है।

पीतल: पीतल में खाना खाना ठीक हो सकता है मगर पकाना नहीं, ये धातु गर्म होने पर नमक व एसिडिक फूड्स के साथ रिएक्ट कर सकता है, इसलिए इसमें खाना बनाने से परहेज करना चाहिए।

स्टील: खाना पकाने के लिए सबसे उचित धातु स्टील को माना जाता है। इसके नॉन-रिएक्टिव गुण सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। सेहत के लिए स्टील में खाना-पीना बेहतर होता है।

लोहे की कड़ाही: लोहे की कड़ाही, तवा और करछी के इस्तेमाल से शरीर में हीमोग्लोबिन बेहतर करने में मदद मिलती है।

Source : जनसत्ता

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