कौओं के रूप में हमारे घर भोजन करने आते हैं पितृ, क्या सच है ये बात?
अनंत चतुर्दशी के अगले दिन से ही पितृपक्ष शुरू हो जाता है. भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष चलता है. इसका हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में हमारे पितृ कौओं के रूप में आते हैं और भोजन करके तृप्त हो जाते हैं. लेकिन इसका क्या रहस्य है.
कौओं को क्यों कराया जाता है भोजन
शास्त्रों में यह कहा गया है कि कौए और पीपल पितृ का रूप है. ऐसे में कौए को खाना खिलाने से और पीपल को पानी पिलाने से पितृ तृप्त हो जाते हैं.
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में रह सकती है. शास्त्रों में यह भी मान्यता है कि पुण्यात्मा कौए के रूप में जन्म लेकर उचित समय और गर्भ का इंतजार करती है. ऐसा भी कहा जाता है कि जब व्यक्ति के प्राण उसके शरीर से निकल जाते हैं तो आत्मा सबसे पहले कौए का रूप धारण करती है.
यह भी मान्यता है कि कौए यमराज का रूप है. अगर कौए श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लें तो पितृ आपसे प्रसन्न और तृप्त हैं.धार्मिक शास्त्रों में कौए को देवपुत्र भी माना गया है.
ऐसा कहा जाता है कि एक बार माता सीता के पैरों में कौए चोंच मार दी थी जिससे उनके घाव हो गया तो भगवान राम ने गुस्से में उस कौए की बाण से आंख फोड़ दी. लेकिन जब कौए को पछतावा हुआ तो भगवान राम ने उसे आशीर्वाद दिया कि तुमको खिलाए हुए भोजन से पितृ तृप्त होंगे. वह कौवा कोई और नहीं बल्कि देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे.
ऐसा भी माना जाता है कि कौए को भविष्य में होने वाली घटनाओं का पहले से ही पता चल जाता है. यह भी कहा जाता है कि जिस दिन कौए की मृत्यु होती है, उस दिन उसका कोई भी साथी भोजन नहीं करता है.
कौवा कभी भी अकेले नहीं खाता, बल्कि अपने साथियों के साथ हमेशा बांटकर खाता है. सफेद कौवा बहुत ही दुर्लभ होता है. कौए की मृत्यु आकस्मिक ही होती है. इसे कोई बीमारी या वृद्धावस्था नहीं मार सकती.